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دارالافتاء گلزارِ طیبہ – गुझरात (भारत)
Dār al-Iftā Gulzār-e-Ṭayyibah – Gujarat, India
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फ़तवा नंबर: GT-NKH-031 │ तारीख़ ए इजराः 14 ज़ुलक़अदा 1446 हिजरी / 13 मई 2025
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निकाह पढ़ाने का हक़ – शरीअत व समाजी नज़रिया
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सवाल:
क्या निकाह पढ़ाने का हक़ सिर्फ मस्जिद के इमाम को है? अगर कोई और आलिम या नेक मुसलमान पढ़ा दे तो क्या ये इमाम साहब का हक़ छीनना कहलाएगा?
जवाब:
शरीअत में निकाह पढ़ाने के लिए "इमाम" होना शर्त नहीं है।
अगर कोई समझदार, दीनी समझ रखने वाला, बालीग़ और शरीअत के उसूलों को जानने वाला शख़्स (चाहे वो इमाम हो या न हो) निकाह के इजाब-ओ-क़बूल को सही तरीक़े से अंजाम दे, तो निकाह बिलकुल दुरुस्त और जायज़ होगा।
लेकिन...!
मस्जिद के इमाम को निकाह पढ़ाने में तरजीह (प्राथमिकता) देना ज़्यादा बेहतर और मुनासिब है, क्योंकि:
ये इमाम के ओहदे का अदब है,
मस्जिद का निज़ाम क़ायम रहता है,
और इमाम को एक जायज़ आमदनी मिलती है।
अगर कोई दूसरा निकाह पढ़ा दे तो...
यह शरीअत की नज़र में इमाम का हक़ मारना नहीं कहलाता।
लेकिन अगर इमाम साहब मौजूद हों और उनकी इजाज़त के बग़ैर किसी और को बुलाया जाए, जिससे उनका दिल दुखे, तो ये अख़लाक़ी लिहाज़ से नाफ़रमानी मानी जा सकती है।
आजकल चूंकि इमामों की तनख्वाह बहुत कम होती है, ऐसे मौक़ों पर निकाह पढ़ाना उनकी एक ख़िदमत और आमदनी का ज़रिया भी बनता है।
इसलिए आज के हालात के मद्देनज़र बिना इमाम की इजाज़त किसी और से निकाह पढ़वाना मुनासिब नहीं, और जो हदिया दिया जाए वो इमाम को ही दिया जाना ज़रूरी है।
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शरई दलीलें:
«فَإِنْ أَجَابُوا فَأَشْهِدُوا ذَوَيْ عَدْلٍ مِنْكُمْ»
(सूरह तलाक़: 2)
“जब वो तैयार हो जाएँ तो दो इन्साफ़ वाले गवाह बना लो।”
हदीस:
निकाह का एलान व गवाह बनाना ज़रूरी है।
फिक़्ही उसूल:
«العبرة للشرائط لا للصفات»
“हुक्म का दारोमदार शर्तों पर होता है, ओहदों पर नहीं।”
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और अल्लाह तआला बेहतर जानता है।
✒ मुफ्ती अबू अहमद एम. जे. अक़बरी
(दारुलइफ्ता गुलज़ार-ए-तैय्यबा, गुजरात)
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